Ticker

6/recent/ticker-posts

Round Table Conference: गोलमेज सम्मेलन की पूरी जानकारी, UPSC, UPSI, SSC & Police Exams | PDF

Round Table Conference: गोलमेज सम्मेलन की पूरी जानकारी, UPSC, UPSI, SSC & Police Exams | PDF

गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conferences) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय हैं। ये सम्मेलन 1930 से 1932 के बीच लंदन में ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित किए गए थे, जिनका मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करना और भारतीय नेताओं की मांगों को संबोधित करना था। 

Round Table Conference: गोलमेज सम्मेलन की पूरी जानकारी, UPSC, UPSI, SSC & Police Exams | PDF

गोलमेज सम्मेलन भारतीय इतिहास की एक जटिल घटना हैं, जो असफलता के बावजूद स्वतंत्र भारत के संवैधानिक ढांचे की नींव रखते हैं। UPSC अभ्यर्थियों को इनके विवरण, प्रतिभागी और परिणामों का गहन अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि ये प्रीलिम्स और मेन्स दोनों में प्रासंगिक हैं। कुल मिलाकर, ये सम्मेलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद की सीमाओं को उजागर करते हैं। 

गोलमेज सम्मेलन, प्रथम, द्वितीय, तृतीय सम्मेलन

Round Table Conferences, First, Second, Third Conferences

ये सम्मेलन साइमन आयोग की रिपोर्ट (मई 1930) के आधार पर बुलाए गए थे, जब भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) और नमक सत्याग्रह जैसी घटनाओं से ब्रिटिश शासन हिल गया था। कुल तीन गोलमेज सम्मेलन हुए, लेकिन इनकी सफलता सीमित रही क्योंकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और अन्य दलों के बीच मतभेद थे।

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से, ये सम्मेलन आधुनिक भारतीय इतिहास के भाग हैं, जहां साम्प्रदायिकता, संघीय व्यवस्था और आरक्षण जैसे मुद्दे उभरे, जो बाद में 1935 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) का आधार बने।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical background)

Round table conference detailed study for upsc pdf 

1920 के दशक के अंत में भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन तेज हो गया था। साइमन आयोग (1927) का भारतीयों द्वारा बहिष्कार किया गया क्योंकि इसमें कोई भारतीय सदस्य नहीं था। आयोग की रिपोर्ट में भारत को प्रांतीय स्वायत्तता देने की सिफारिश की गई, लेकिन केंद्र में ब्रिटिश नियंत्रण बरकरार रखा गया। 

लॉर्ड इरविन (वायसराय) ने अक्टूबर 1929 में 'डोमिनियन स्टेटस' का वादा किया और गोलमेज सम्मेलन का प्रस्ताव रखा। हालांकि, कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया और लाहौर अधिवेशन (1929) में पूर्ण स्वराज की मांग की। महात्मा गांधी के नेतृत्व में मार्च 1930 में दांडी यात्रा शुरू हुई, जिससे ब्रिटिश सरकार को सम्मेलन बुलाने पड़े। 

ये सम्मेलन 'फूट डालो और राज करो' की नीति का हिस्सा थे, जहां ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न समुदायों (मुस्लिम, दलित, रियासतें) को अलग-अलग आमंत्रित कर एकता तोड़ने की कोशिश की। UPSC में इस पृष्ठभूमि से संबंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, जैसे सम्मेलनों की विफलता के कारण।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन (1930-1931) | First Round Table Conference (1930–1931)

Three Round Table Conference attended by Indian

प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक लंदन में आयोजित हुआ। इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने की। कुल 89 प्रतिनिधि शामिल हुए, जिनमें ब्रिटिश भारत से 57, रियासतों से 16 और ब्रिटिश दलों से 16 थे। 

कांग्रेस ने बहिष्कार किया क्योंकि उसके कई नेता (जैसे गांधी, नेहरू) सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण जेल में थे। 

प्रमुख प्रतिभागी थे: मुस्लिम लीग से आगा खान, मोहम्मद अली जिन्ना, मौलाना मोहम्मद अली; हिंदू महासभा से बी.एस. मुंजे, एम.आर. जयकर; उदारवादी से तेज बहादुर सप्रू; दलित वर्ग से डॉ. बी.आर. अंबेडकर; महिलाओं से बेगम जहांआरा शाहनवाज और राधाबाई सुब्बारायन; रियासतों से महाराजा भूपिंदर सिंह (पटियाला) और सयाजीराव गायकवाड़।

मुख्य चर्चाएं संघीय व्यवस्था, विधायिका की जिम्मेदारी और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर केंद्रित थीं। अंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की। परिणामस्वरूप, अखिल भारतीय महासंघ (All India Federation) बनाने का प्रस्ताव आया, जहां प्रांतों और रियासतों को स्वायत्तता मिलेगी, लेकिन केंद्र में ब्रिटिश नियंत्रण रहेगा। 

"सम्मेलन असफल रहा क्योंकि कांग्रेस की अनुपस्थिति से कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका। मैकडोनाल्ड ने घोषणा की कि सरकार विधायिका के प्रति जिम्मेदार होगी, लेकिन कांग्रेस की भागीदारी जरूरी है। UPSC के लिए महत्व: यह सम्मेलन सांप्रदायिक विभाजन की शुरुआत दर्शाता है।"

गांधी-इरविन समझौता (1931) | Gandhi-Irwin Pact (1931)

प्रथम सम्मेलन की विफलता के बाद, कांग्रेस को दूसरे सम्मेलन में शामिल करने के लिए 25 जनवरी 1931 को गांधी और कांग्रेस कार्यकारिणी सदस्यों को रिहा किया गया। 14 फरवरी से 5 मार्च 1931 तक चली वार्ता में गांधी-इरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact) हुआ। 

मुख्य शर्तें: आंदोलन समाप्त करना, कांग्रेस का सम्मेलन में भाग लेना; ब्रिटिश द्वारा अध्यादेश वापस लेना, राजनीतिक कैदियों की रिहाई (भगत सिंह को छोड़कर), नमक कर में छूट, शांतिपूर्ण पिकेटिंग की अनुमति। 

कांग्रेस ने कराची अधिवेशन (मार्च 1931) में इसे मंजूर किया। यह समझौता UPSC में समझौतों और आंदोलनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) | Second Round Table Conference (1931)

Second Round Table Conference was held in 

द्वितीय सम्मेलन 7 सितंबर से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में हुआ। कांग्रेस ने भाग लिया, जहां गांधी एकमात्र आधिकारिक प्रतिनिधि थे। अन्य प्रतिभागी: सरोजिनी नायडू, मदन मोहन मालवीय, घनश्याम दास बिरला, मोहम्मद इकबाल, डॉ. अंबेडकर, जिन्ना आदि। महिलाओं का प्रतिनिधित्व एनी बेसेंट ने किया। 

गांधी ने कांग्रेस को पूरे भारत का प्रतिनिधि बताया और पूर्ण स्वराज की मांग की, लेकिन मुस्लिम लीग, रियासतों और अंबेडकर ने इसे चुनौती दी। मुख्य विवाद साम्प्रदायिक समस्या पर था: मुसलमानों, सिखों और दलितों के लिए अलग निर्वाचन। गांधी और अंबेडकर के बीच 15 दिनों तक बहस चली, जहां गांधी ने दलितों को हिंदू समाज का हिस्सा माना।

सम्मेलन असफल रहा क्योंकि कोई सहमति नहीं बनी। गांधी निराश होकर लौटे और 1932 में आंदोलन पुनः शुरू किया। विंस्टन चर्चिल ने गांधी को 'देशद्रोही फकीर' कहा। UPSC महत्व: यह सम्मेलन पूना समझौते (1932) का पूर्ववर्ती है, जहां गांधी के अनशन से दलितों को आरक्षण मिला।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन (1932) | Third Round Table Conference (1932)

3rd Round Table Conference was held in

तृतीय सम्मेलन 17 नवंबर से 24 दिसंबर 1932 तक लंदन में हुआ। इसमें केवल 46 प्रतिनिधि थे; कांग्रेस, लेबर पार्टी और जिन्ना ने बहिष्कार किया। प्रमुख प्रतिभागी: तेज बहादुर सप्रू, डॉ. अंबेडकर (तीनों सम्मेलनों में शामिल एकमात्र भारतीय)। 

चर्चाएं सीमित रहीं: मूल अधिकार, गवर्नर की शक्तियां और सुधार। चौधरी रहमत अली ने 'पाकिस्तान' नाम सुझाया। परिणाम: कोई ठोस निर्णय नहीं, लेकिन मार्च 1933 में 'श्वेत पत्र' (White Paper) जारी हुआ, जिसके आधार पर लिनलिथगो समिति बनी और 1935 का अधिनियम पारित हुआ। 

UPSC के लिए:: यह सम्मेलन 1935 अधिनियम का आधार है, जो प्रांतीय स्वायत्तता और संघीय ढांचे का प्रावधान करता है।

समग्र परिणाम और महत्व

गोलमेज सम्मेलनों से कोई प्रत्यक्ष सफलता नहीं मिली; वे सांप्रदायिक विभाजन बढ़ाने वाले साबित हुए। हालांकि, इनसे 1935 अधिनियम निकला, जो भारत के संविधान का पूर्ववर्ती था। UPSC में ये सम्मेलन राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिकता और संवैधानिक विकास के अध्ययन के लिए आवश्यक हैं। 
महत्वपूर्ण बिंदु: अंबेडकर की भूमिका, गांधी का अनशन, पाकिस्तान विचार की शुरुआत। ये सम्मेलन दिखाते हैं कि ब्रिटिश नीति भारतीय एकता तोड़ने की थी, लेकिन अंततः स्वतंत्रता आंदोलन मजबूत हुआ।
Round Table Conference PDF: Click here 
Round Table Conference in Hindi: Click here 

History Study Notes

👇

1000+ Indian History Notes PDF 

Click here

भारत में महत्वपूर्ण जनजाति और आदिवासी विद्रोहों की कालक्रम

PDF

Indian Modern History in English 

PDF

Some other History Notes 

Click here 


Post a Comment

0 Comments