भारत में महत्वपूर्ण जनजाति और आदिवासी विद्रोहों की कालक्रम
(Chronology of important tribes and tribal rebellions in India)
भारत का इतिहास आदिवासी समुदायों के संघर्षों से भरा पड़ा है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान, आदिवासी जनजातियों ने अपनी भूमि, जंगलों और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनेक विद्रोह किए। ये विद्रोह न केवल आर्थिक शोषण के खिलाफ थे, बल्कि सांस्कृतिक पहचान को बचाने का प्रयास भी थे।
ब्रिटिश नीतियों जैसे भूमि राजस्व प्रणाली, जंगलों का व्यावसायिक दोहन और बाहरी व्यापारियों का प्रवेश ने आदिवासियों को मजबूर किया कि वे हथियार उठाएं।
महत्वपूर्ण जनजाति विद्रोह क्रम
- I. सन्यासी विद्रोह-1763
- II. पाइक विद्रोह -1817
- III. भील विद्रोह -1818
- IV. छोटा नागपुर का विद्रोह-1820
- V. रामोशी विद्रोह -1822
- VI. अहोम विद्रोह-1828
- VII. बहावी आंदोलन -1830
- VIII. कोल विद्रोह1831
- IX. कुका विद्रोह-1840
- X. संथाल विद्रोह-1855
- XI. मुंडा विद्रोह-1895
- XII. ताना भगत आंदोलन -1914
- XIII. एका विद्रोह-1921
- XIV. मोपला विद्रोह-1921
- XV. रम्पा विद्रोह-1922
चुआर विद्रोह (1767-1833)
- स्थान: जंगल महल, पश्चिम बंगाल-झारखंड
- नेता: जगन्नाथ सिंह पाटर, दुर्जन सिंह, रानी शिरोमणि
- कारण: भारी कर, भूमि हड़पना, ब्रिटिश अतिक्रमण
- परिणाम: ब्रिटिश दमन, लेकिन स्थानीय प्रतिरोध की शुरुआत।
हल्बा डोंगर विद्रोह (1774-1779)
- स्थान: बस्तर, छत्तीसगढ़
- नेता: हल्बा जनजाति
- कारण: ब्रिटिश और मराठा शासन का विरोध, स्वतंत्र हल्बा राज्य की मांग
- परिणाम: असफल, लेकिन आदिवासी एकता का प्रतीक।
संताल विद्रोह (तिलका मांझी) (1783-1784)
- स्थान: भागलपुर, झारखंड
- नेता: तिलका मांझी
- कारण: जमींदारों का शोषण, भूमि हड़पना
- परिणाम: तिलका को फांसी, लेकिन संताल विद्रोहों की प्रेरणा।
गडकरी विद्रोह (1789-1791)
- स्थान: नागपुर, महाराष्ट्र
- नेता: गडकरी जनजाति
- कारण: ब्रिटिश भूमि नीतियों का विरोध
- परिणाम: दबाया गया।
भिल विद्रोह (1794-1831)
- स्थान: खानदेश, महाराष्ट्र
- नेता: भिल जनजाति
- कारण: जंगल अधिकारों पर ब्रिटिश अतिक्रमण
- परिणाम: लंबा संघर्ष, अंततः दबाया गया।
कोल विद्रोह (1831-1832)
- स्थान: छोटानागपुर, झारखंड
- नेता: कोल, हो, ओरांव, भुमिज जनजातियाँ
- कारण: जमींदारों और महाजनों का शोषण, भूमि विस्थापन
- परिणाम: दबाया गया, लेकिन आदिवासी चेतना जागृत।
संताल हूल (1855-1856)
- स्थान: संताल परगना, झारखंड-बिहार
- नेता: सिद्धू और कान्हू मुर्मू
- कारण: भारी लगान, साहूकारों का ऋण जाल, भूमि हड़पना
- परिणाम: दबाया गया, लेकिन संताल परगना जिला बना।
खोंड विद्रोह (1837-1856)
- स्थान: ओडिशा और आंध्र प्रदेश
- नेता: चक्र बिसोई
- कारण: मानव बलि पर प्रतिबंध, नए कर, जमींदारों का प्रवेश
- परिणाम: दबाया गया, सांस्कृतिक प्रतिरोध का प्रतीक।
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (आदिवासी भागीदारी)
- स्थान: छोटानागपुर, झारखंड
- नेता: थाकुर विश्वनाथ शाहदेव, कोल आदिवासी
- कारण: ब्रिटिश शासन और मिशनरियों का विरोध
- परिणाम: राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ाव।
कोया विद्रोह (1879-1880)
- स्थान: गोदावरी, आंध्र प्रदेश
- नेता: कोया जनजाति
- कारण: पुलिस अत्याचार, जंगल अधिकारों का हनन
- परिणाम: दबाया गया।
मुंडा उलगुलान (1899-1900)
- स्थान: छोटानागपुर, झारखंड
- नेता: बिरसा मुंडा
- कारण: भूमि हड़पना, मिशनरियों का सांस्कृतिक हस्तक्षेप
- परिणाम: बिरसा की गिरफ्तारी और मृत्यु, आदिवासी राष्ट्रवाद की प्रेरणा।
सेंटिनलीज प्रतिरोध (1883)
- स्थान: अंडमान-निकोबार
- नेता: सेंटिनलीज जनजाति
- कारण: ब्रिटिश घुसपैठ का विरोध
- परिणाम: सीमित प्रभाव, सांस्कृतिक संरक्षण।
लारका कोल विद्रोह (1891-1892)
- स्थान: बिहार
- नेता: कोल जनजाति
- कारण: ब्रिटिश नीतियों और शोषण का विरोध
- परिणाम: दबाया गया।
बस्तर विद्रोह (भूमकाल) (1910)
- स्थान: बस्तर, छत्तीसगढ़
- नेता: गुंडा धुर
- कारण: जंगल कटाई, नए कर
- परिणाम: दबाया गया, लेकिन आदिवासी एकता प्रदर्शित।
कुकी विद्रोह (1917-1919)
- स्थान: मणिपुर
- नेता: कुकी चीफ (हाओसा)
- कारण: ब्रिटिश शासन और जबरन भर्ती का विरोध
- परिणाम: दबाया गया।
ताना भगत आंदोलन (1920-1921)
- स्थान: छोटानागपुर, झारखंड
- नेता: ओरांव जनजाति
- कारण: गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित, ब्रिटिश शासन विरोध
- परिणाम: राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ाव।
राम्पा विद्रोह (1922-1924)
- स्थान: गोदावरी एजेंसी, आंध्र प्रदेश
- नेता: अल्लूरी सीतारामा राजू
- कारण: जंगल कानून, ब्रिटिश शोषण
- परिणाम: राजू की मृत्यु, लेकिन 'जंगल का राजा' के रूप में प्रसिद्धि।
लक्ष्मण नायक का विद्रोह (1942)
- स्थान: ओडिशा
- नेता: लक्ष्मण नायक
- कारण: भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरित, ब्रिटिश शासन विरोध
- परिणाम: नायक को फांसी, राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान।
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